जसोल ( बाड़मेर) – श्री राणी भटीयाणी मंदिर संस्थान की और से आयोजित मंदिर प्रांगण में आयोजित की जा रही राम कथा के चौथे दिन मुरलीधरजी महाराज नें भगवान राम के नामकरण व बाल्यकाल के विभिन्न प्रसङ्ग को बताया जिसमें आदमी की प्रशंसा ज्यादा काम की नही हैं प्रशंसा आदमी के जीवन में विकार उत्पन्न करती हैं लेकिन उसके साथ साथ निंदा भी जरूरी हैं उससे विकार दुर होता हैं ,ईष्या व अंहकार का भाव जीवन में नही होना चाहिए | जीवन के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो दो दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहते हैं पहला भगवान का तथा दुसरा संत का | यदि भरत नही होते तो राम व सीता के प्रेम का पता नही लगता , परिवार में स्वार्थ के झगड़ा रहता हैं जिसका लक्षण परमात्मा का प्रेम से वो ही श्रेष्ठ है ।
मुरलीधरजी नें बताया की जिसके जीवन मे तमो गुण होता है, उसे नींद काम आती है क्योंकि व प्रेम की दशा है । जीवन मे मनुष्य को अवगुन को नही छुपाना चाहिए उसको किताब की तरह खुला रखना , जो राम को प्रिय है वो ही जगत का आधार है , यदि घर में भोजन गृहणी बनाती है वो भी राम का कीर्तन करते हुए उस भोजन का स्वाद अलग ही होता है । जैसा अन्न खाते है वैसा मन रहता है पूर्व में नारी परिवार में शिक्षा देती थी कि अधर्म का पैसा घर मे नही आना चाहिये । इच्छाओं को सीमित रखते हुए जीवन के तरीके में बदलाव होना चाहिए , हमारी धरती ऐसी हैं जहाँ शीश के कट जाने के बाद भी धड लडते हैं , ऐसी तपो भुमि और कही भी देखने को नही मिलेगी | संत को स्थिर जल की तरह नही होकर निर्मल अथार्त बहते हुए जल की तरह होना चाहिए ,जीवन में कर्म को देखना चाहिए संचार के वैराग्य को नही देखना चाहिए ,जीवन में राग का प्रवेश नही होने देना चाहिए |
भगवान से सुन्दर इस संचार में कोई नही हैं ,भक्त को भगवान के साथ के रिस्ते को समझना चाहिए | मानव को अपनी सुन्दरता का भान नही करना चाहिए | जिस प्रकार बिन पानी के मछली तडपती हैं ठीक उसी प्रकार मानव ज्ञान नही होने से तड़पता हैं | हरि की कथा का कोई पार नही हैं ,राम का चरित्र ऐसा हैं करोड़ों करोड़ों कल्प भी बीत जाए लेकिन उसका बखान पुरा नही होगा | मानव को जीवन में तीर्थ करना चाहीये | कथा में विजयसिंह जोधा , सावंतराज सोनी , काशीराम राठी, मांगीलाल गौड़ , कुंदनमल दर्जी , सांवल दास संत ,विनोद सेवग आदि श्रोता उपस्थित थे |