जयपुर – पिता का साया सर से उठ गया। कैंसर से ग्रस्त विधवा माँ का उदयपुर और अहमदाबाद में ईलाज चल रहा है। परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है इस वजह से दोनों बहनें मिलकर सिलाई का काम करती हैं और उसी से जैसे-तैसे घर चल पाता है। जीवन से संघर्ष और अभावों के साये में जैसे-तैसे जिन्दगी गुजर रही है। नियति ने इस परिवार पर ऎसा कहर ढाया है कि समस्याओं और परेशानियों की कल्न्पना भी नहीं की जा सकती।
जीवन के यथार्थ से रूबरू कराने वाली यह मार्मिक कहानी है राजसमन्द के छोटे से गांव बामनटुकड़ा की, जहाँ की दो लड़कियों से सारे अभावों और पीड़ाओं के बावजूद ऎसा कुछ कर दिखा रही हैं कि इसने यह सिद्ध कर दिया है कि परिस्थितियां चाहे कितनी ही विकट क्यों न हों, हौंसलों बूते आसमान की उड़ान पायी जा सकती है।
स्वच्छ भारत मिशन में भागीदार बनी इन दोनों बहनों ने अपने घर में शौचालय बनवा लिया और गुणवत्ता युक्त काम सुनिश्चित करने और धन की मितव्ययता की दृष्टि से इन दोनों ने शौचालय निर्माण के लिए कारीगर के काम मेंं हाथ बँटाया। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत के पैसों का उपयोग किया और शौचालय निर्माण करा दिया।
नियति की निर्ममता भर क्रूर कहानी की पात्र मासूमियत से भरी राधा और सीता बताती हैं कि दूर बाहर खुले में शौच जाने में शर्म आती थी और इसीलिए उन्होंने तय कर लिया कि खुले में शौच नहीं जाएंगी, इसलिए जल्द से जल्द अपने घर में शौचालय बनाने का प्रण किया और पूरी मेहनत करते हुए शौचालय बना डाला। घर में ही शौचालय बन जाने से अब उनकी कई समस्याएं दूर हो गई हैं। बेटियों और माँ के साथ घर आने वाले मेहमानों के लिए भी यह शौचालय उपयोगी सिद्ध हो रहा है।